Tuesday 12 July 2016

तन तुम्हारा अगर राधिका बन सके

तन तुम्हारा अगर राधिका बन सके, मन मेरा फिर तो घनश्याम होजायेगा।
मेरे होठों की वंशी जो बन जाओ तुम, सारा संसार बृजधाम हो जायेगा।

तुम अगर स्वर बनो राग बन जाऊँ मैं
तुम रँगोली बनो फाग बन जाऊँ मैं
तुम दिवाली तो मैं भी जलूँ दीप सा
तुम तपस्या तो बैराग बन जाऊँ मैं
नींद बन कर अगर आ सको आँख में, मेरी पलकों को आराम हो जायेगा।

मैं मना लूँगा तुम रूठ्कर देख लो
जोड लूँगा तुम्हें टूट कर देख लो
हूँ तो नादान फिर भी मैं इतना नहीं
थाम लूँगा तुम्हें छूट कर देख लो
मेरी धडकन से धडकन मिला लो ज़रा, जो भी कुछ खास है आम हो जायेगा।

दिल के पिजरे में कुछ पाल कर देखते
खुद को शीशे में फिर ढाल कर देखते
शांति मिलती सुलगते बदन पर अगर
मेरी आँखों का जल डाल कर देखते
एक बदरी ही बन कर बरस दो ज़रा, वरना सावन भी बदनाम हो जायेगा।

साभार: डॉ विष्णु सक्सेना 

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