Wednesday 13 July 2016

हाल -ए- कश्मीर रचनाकार- संजय चौहान

लिखने को मैं हाल -ए- कश्मीर लिख दूं
आतंक के आकाओं की तकदीर लिख दूं..
पर क्या इससे बदलने वाला है कुछ भी ...
अगर हां ! तो मैं अपने दिल की पीर
लिख दूं...!

क्या ये पहली दफा है ,या फिर
आखिरी ...!
जब एक आतंकी के लिए रोई हो मस्जिद
बाबरी ...!!
गर ये सच है ! ,तो लगता है मै खुद को संजय
नही मीर लिख दूं..
इस हिन्द ए घाटी को स्वर्ग नही
,नर्क ए कश्मीर लिख दूं..

हिजबुल के आतंकी को तुमने बेटे सा मान दिया ..
लगा गले उस जिहादी को ,तुमने अपने मजहब को
बदनाम किया..
गर ये सच है !,तो लगता है मैं खुद को संजय
नही मीर लिख दूं...
इस हिन्द ए घाटी को
भागीरथी का अमृत नही
,बिष ए कश्मीर लिख दूं..

आंतक को पनाह देकर, तुमने घाटी को क्या इनाम
दिया ...
मातम मनाकर एक आतंकी का ,तुमने अल्लाह को
भी शर्मशार किया ..
गर ये सच है तो लगता है ,मैं खुद को संजय
नही मीर लिख दूं..
इस हिन्द ए घाटी को ,हिमालय की
चोटी नही,चोटो की
पीर लिख दूं ..

देख रहा हूं मै भविष्य भारत का ,जिस पर काले झण्डो का साया
है ..
संभल जाओ ऐ हिन्द के वीरो ,नही
तुमने पार न पाया है ....
गर ये सच है तो लगता है ,मै खुद को संजय
नही मीर लिख दूं...
आखिर कैसे मै इस हिन्द ए घाटी को ,भारत
की कश्मीर लिख दूं...

रचनाकार- संजय चौहान

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