घाटी के घर घर में पलते आतंकी मंसूबे हैं
देशद्रोह के दलदल में ये गर्दन तक जा डूबे हैं
पाकिस्तानी झंडे पूरी घाटी में लहराते हैं
वोटों के सौदागर कुछ भी कहने से घबराते हैं
भारत इनको गैर लगे है पाकिस्तान लगे प्यारा
इनकी दिली तमन्ना है हो जाये फिर से बंटवारा
इनके मन में सोच बसी है भारत की बरबादी की
फोटोकॉपी हैं ये सारे बाबर और बगदादी की
इसी देश में रहकर करते इसकी ही बदनामी हैं
इसी देश का खाकर करते इससे नमक हरामी हैं
भारत माँ का तन घायल है गद्दारों के पापों से
पूरी घाटी भरी पड़ी है आस्तीन के साँपों से
हरी भरी भूमि को बंजर रेगिस्तान बनाने को
जिन्ना के बेटे निकले है पाकिस्तान बनाने को
जिस सेना ने जान बचायी उसको पत्थर मार रहे
लाल चौक पर खड़े हुए ये दिल्ली को ललकार रहे
पीठ पे खंजर मार चुके थे अब मारा है छाती में
लेकर बगदादी का झंडा घूम रहे हैं घाटी में
दोस्त बनाये फिरते हैं जो हर दुश्मन को भारत के
वृक्ष लगे हैं जिनके घर में केवल अपने स्वारथ के
युद्ध पतंगे सूरज से हरगिज भी ठान नहीं सकते
लातों के ये भूत कभी बातों से मान नहीं सकते
शांतिवार्ता बंद करो अब युद्धनीति की बात करो
हाथ उठाने वालों से अब तुम भी दो दो हाथ करो
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कवि विशाल अग्रवाल "अग्रवंशी"
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