Tuesday 12 July 2016

घाटी के घर घर में पलते आतंकी मंसूबे हैं

घाटी के घर घर में पलते आतंकी मंसूबे हैं
देशद्रोह के दलदल में ये गर्दन तक जा डूबे हैं
पाकिस्तानी झंडे पूरी घाटी में लहराते हैं
वोटों के सौदागर कुछ भी कहने से घबराते हैं
भारत इनको गैर लगे है पाकिस्तान लगे प्यारा
इनकी दिली तमन्ना है हो जाये फिर से बंटवारा
इनके मन में सोच बसी है भारत की बरबादी की
फोटोकॉपी हैं ये सारे बाबर और बगदादी की
इसी देश में रहकर करते इसकी ही बदनामी हैं
इसी देश का खाकर करते इससे नमक हरामी हैं
भारत माँ का तन घायल है गद्दारों के पापों से
पूरी घाटी भरी पड़ी है आस्तीन के साँपों से
हरी भरी भूमि को बंजर रेगिस्तान बनाने को
जिन्ना के बेटे निकले है पाकिस्तान बनाने को
जिस सेना ने जान बचायी उसको पत्थर मार रहे
लाल चौक पर खड़े हुए ये दिल्ली को ललकार रहे
पीठ पे खंजर मार चुके थे अब मारा है छाती में
लेकर बगदादी का झंडा घूम रहे हैं घाटी में
दोस्त बनाये फिरते हैं जो हर दुश्मन को भारत के
वृक्ष लगे हैं जिनके घर में केवल अपने स्वारथ के
युद्ध पतंगे सूरज से हरगिज भी ठान नहीं सकते
लातों के ये भूत कभी बातों से मान नहीं सकते
शांतिवार्ता बंद करो अब युद्धनीति की बात करो
हाथ उठाने वालों से अब तुम भी दो दो हाथ करो
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कवि विशाल अग्रवाल "अग्रवंशी"

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