Sunday 21 December 2014

ये तेरी वेरूखी

ये तेरी वेरूखी की हम से आदत खाक छूटेगी
कोई दरिया न यह समझे कि मेरी प्यास टूटेगी
तेरे वादे का तू जाने मेरा वो ही इरादा है
कि जिस दिन सांस टूटेगी उसी दिन आस छूटेगी

अभी चलता हूं रस्ते को में मंजिल मान लूं कैसे
मसीहा दिल को अपनी जिद का कातिल मान लूं कैसे
तुम्हारी याद के आदिम अंधेरे मुझ को घेरे हैं
तुम्हारे बिन जो वीते दिन उन्हें दिन मान लूं कैसे

गमों को आबरू अपनी खुशी को गम समझते हैं
जिन्हें कोई नहीं समझा उन्हें वस हम समझते हैं
कशिश जिन्दा है अपनी चाहतों में जानेजा क्योंकि
हमें तुम कम समझती हो तुम्हें हम कम समझते हैं।

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