Friday 26 December 2014

अजीब शख़्स हूँ मैं उसको चाहने वाला

अजीब शख़्स हूँ मैं उसको चाहने वाला
जो आदतन ही दिलों को है तोड़्ने वाला

मैं पी रहा हूँ बड़े ज़र्फ़ से उसी दिन से
कि जब से कोई नहीं मुझको रोकने वाला

बहुत उदास हुआ मेरी चुप्पियों से वही
हर एक बात पे रह-रह के टोकने वाला

मैं उड़ गया तो मेरे लौटने को तरसेगा
मेरे परों को सुबह शाम तोलने वाला

वो लाख मुझसे कहें, मिन्नतें करें लेकिन
मैं अब के भेद नहीं कोई खोलने वाला

मेरे सिवाए कोई और हो नहीं सकता
मेरे वजूद को मिट्टी में रोलने वाला

मैं आइने की तरह क्यूँ फ़िज़ूल में टूटूँ
कुछ इस अदा से मैं अब सच हूँ बोलने वाला

Source: Prafull Parvez

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