उड़ा दिये हैं, हमनें अरमानों को परिंदों की तरह...
जो नज़र आ जाएं किसी को गले से भी लगा लेना...
जो नज़र आ जाएं किसी को गले से भी लगा लेना...
सारी रौशनी कर दी है रुख्सत समेट कर हमनें...
छुपा सको जो इनको ,अंधेरों में भी छुपा लेना...
नज़रअंदाज़ करना है, तो दिन का इन्तेजार क्यों...
सितारा टुटा हुआ समझना जमीं से भी उठा लेना...
बहुत है भीड़ दुनियां में कमी है फिर भी अपनों की...
मुझे अपना भी गर समझो, गले से भी लगा लेना..
No comments:
Post a Comment