Sunday 21 December 2014

खुद को जो मान बैठे हैं खुदा

खुद को जो मान बैठे हैं खुदा ये जान लें।
ये सिर इबादत के सिवा झुकता नहीं है।।

वो और होंगे, कौड़ियों के मोल जो बिक गये।
पर जहां में हर शख्स तो बिकता नहीं है।।

दर्दे जिंदगी का बयां कोई महरूम करेगा।
यह खाये-अघाये चेहरों पे दिखता नहीं है।।

पैसे से न तुलता हो जो इस जहान में ।
लगता है अब ऐसा कोई रिश्ता नहीं है।।

जिनके मकां चांदी के , बिस्तर हैं सोने के।
उन्हें इक गरीब का दुख दिखता नहीं है।।

इक कदम चल कर जो मुश्किलों से हार गये।
उन्हें मंजिले मकसूद का पता मिलता नहीं है।।

वो और होंगे जो निगाहों में तेरी खो गये।
जिंदगी के जद्दोजेहद में, प्यार अब टिकता नहीं है।।

मत भागिए दौलत, शोहरत की चाह में।
तकदीर से ज्यादा यहां मिलता नहीं है।।

सुहाने ख्वाब दिखा ऊंची कुरसियों में बैठ गये।
लगता है उनका मजलूम के दर्द से रिश्ता नहीं है।।

यह अंधेरा दिन ब दिन घना होता जा रहा है मगर।
उम्मीद का सूरज हमें अब तलक दिखता नहीं है।।

आइए अब तो हम ही कोई जतन करें।
मंजिलों तक जो ले जाये राहबर दिखता नहीं है।।

आपाधापी मशक्कत में ना यों बेजार हों।
यहां किसी को मुकम्मल जहां मिलता नहीं है।।

चाहे जितने पैंतरे या दांव-पेंच खेले मगर।
किस्मत पे किसी का दांव तो चलता नहीं है।।

चाहे कुछ भी हो हौसला अपना बुलंद रखिएगा।
हौसला ही पस्त हो तो काम फिर बनता नहीं है।।

तुम्हारे पास आता हूं

तुम्हारे पास आता हूं तो सासें भीग जाती हैं,
मुहब्‍बत इतनी मिलती है कि आंखें भीग जाती हैं।

तबस्सुम इत्र जैसा है हंसी बरसात जैसा है,
वो जब भी बात करता है तो वातें भीग जाती हैं।

तुम्हारी याद से दिल में उजाला होने लगता है,
तुम्हें जब गुनगुनाता हूं तो रातें भीग जाती हैं।

जमी की गोद भरती है तो कुदरत भी चहकती है,
नये पत्ते की आहट से ही शाखें भीग जाती हैं।

तेरे एहसास की खुशबू हमेशा ताजा रहती है,
तेरी रहमत की वारिश से मुरादें भीग जाती हैं।

-श्री आलोक श्रीवास्‍तव

ये तेरी वेरूखी

ये तेरी वेरूखी की हम से आदत खाक छूटेगी
कोई दरिया न यह समझे कि मेरी प्यास टूटेगी
तेरे वादे का तू जाने मेरा वो ही इरादा है
कि जिस दिन सांस टूटेगी उसी दिन आस छूटेगी

अभी चलता हूं रस्ते को में मंजिल मान लूं कैसे
मसीहा दिल को अपनी जिद का कातिल मान लूं कैसे
तुम्हारी याद के आदिम अंधेरे मुझ को घेरे हैं
तुम्हारे बिन जो वीते दिन उन्हें दिन मान लूं कैसे

गमों को आबरू अपनी खुशी को गम समझते हैं
जिन्हें कोई नहीं समझा उन्हें वस हम समझते हैं
कशिश जिन्दा है अपनी चाहतों में जानेजा क्योंकि
हमें तुम कम समझती हो तुम्हें हम कम समझते हैं।

उंगलिया यूं न सब पर उठाया करो

उंगलिया यूं न सब पर उठाया करो
खर्च करने से पहले कमाया करो

जिन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे
वारिशों में पतंगें उड़ाया करो

शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फकीरों को खाना खिलाया करो

दोस्तों से मुलाकात के नाम पर
नीम की पत्तियों को चबाया करो

चॉद सूरज कहां अपनी मन्जिल कहां
ऐसे बेसों को मुंह मत लगाया करो

घर उसी का सही तुम भी हकदार हो
रोज आया करो रोज जाया करो

कितनी पी कैसे कटी रात

कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं,
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं

मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहॉं
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं

ऑंसूओं और शराबों में गुजारी है हयात
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं

जाने क्‍या टूटा हे पैमाना कि दिल है मेरा
विखरे-विखरे है खयालात मुझे होश नहीं

- डा0 राहत इन्‍दौरी साहब

अब सवाल होना चाहिए

क्यों रहे वादे अधूरे ,अब सवाल होना चाहिए
बात सीधे न बने तो ,बवाल होना चाहिए
दर्द का परिहास जब ,होने लगे दरबार में
आँख में आँसू नही तब ,काल होना चाहिए
देश के ये रहनुमा ,इसको कहाँ ले जायेंगे
जिनकी फितरत है कि ,मालामाल होना चाहिए
हर समय ये पीठ अपनी ,थपथपाते रह गये
अपनी करतूतो पे जिनको ,मलाल होना चाहिए
किसकी शिकायत हो ,किससे शिकायत हो
चमन तो उनसे लुटा ,जिन्हे ढाल होना चाहिए
आँसुओ के संग ,अब सपने कही बह जायें न
कुछ नया संकल्प ले ,कुछ कमाल होना चाहिए

जिसने भी की मुहब्बत

जिसने भी की मुहब्बत, रोया जरूर होगा।
वो याद में किसी के खोया जरूर होगा।

 
दिवार के सहारे, घुटनों में सिर छिपाकर ,
 

वो ख्याल में किसी के खोया जरुर होगा।
 

आँखों में आंसुओ के, आने के बाद उसने, 
धीरे से उसको उसने, पोंछा जरुर होगा।
जिसने भी की मुहब्बत, रोया जरूर होगा