Wednesday, 24 December 2014

जाड़ा बहुत सतावत बा

जाड़ा बहुत सतावत बा

सरसर हवा बाण की नाईं
थर थर काँपैं बाबू माई
तपनी तापैं लोग लुगाई
कोहिरा छंटत नहीं बा भाई
चहियै सबै जियावत बा
जाड़ा बहुत सतावत बा

गरमी असौं बराइस खीस
जाड़ा भय बा ओसे बीस
जौ ना रोकिहैं अब जगदीस
मरि जइहैं बुढ़ये दस बीस
जियरा बहुत जरावत बा
जाड़ा बहुत सतावत बा

माछी मच्छर भएन अलोप
पहिने बाटै सब कनटोप
बरफ किहे बा अइसन कोप
गाँव भयल सरवा यूरोप
केहु ना देखै आवत बा
जाड़ा बहुत सतावत बा

Funny Winter
Source: Unknown

Sunday, 21 December 2014

तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी

तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ...खाए जा रहा हूँ 
मै बस जीने की अपनी भूख, मिटायें जा रहा हूँ |

तुझ को देख  कर किया था वादा हमेशा मुस्कराने का 
बस वोही  अधूरी मोहब्बत अब तक निभाए जा रहा हूँ 
तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ...खाए जा रहा हूँ |


चाँद को देखा नहीं , तेरे चेहरे को देखने के बाद
चांदनी रात में सिर्फ , तारों से काम चला रहा हूँ 
तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ...खाए जा रहा हूँ |
यूँ अकेले अकेले जीना भी कोई  जीना है ? 
जिन्दा हूँ... खुद को भरमाये जा रहा हूँ 
तेरे बिना बेस्वाद जी जिन्दगी ...खाए जा रहा हूँ 
मै बस जीने की अपनी भूख, मिटायें जा रहा हूँ |

जब कुछ नहीं बना

जब कुछ नहीं बना तो हमने इतना कर दिया..
खाली हथेली पर दुआ का सिक्का धर दिया।

कब तक निभाते दुश्मनी हम वक्त से हर दिन
इस बार जब मिला वो तो बाँहों में भर लिया।

उस गाँव के बाशिंदों में अजीब रस्म है,
बच्ची के जन्म लेते ही गाते हैं मर्सिया।

बदली हुकूमतें मगर न किस्मतें बदलीं,
मुश्किलजदा लोगों को सबने दर बदर किया।

मुद्दा कोई हो, उसपे बोलना तो बहुत दूर,
संजीदा हो के सोचना भी बंद कर दिया।

रमेश तैलंग

मेरे क़ातिल

मेरे क़ातिल कोई और नहीं मेरे साथी निकले
मेरे जनाजे के साथ बनकर वो बाराती  निकले
रिश्तेदारों ने भी रिस्ता तोड़ दिया उस वक़्त
जब दौलत  कि तिजोरी से मेरे हाथ खली निकले
मेरे किस्मत ने ऐसे मुकाम पर लाकर छोड़ दिया
ग़ैर तो गैर मेरे अपने साये भी सवाली निकले
मोहबात का गुलासनं वीरान हो गया गुल के बगैर
सैयाद कोई और नहीं खुद माली निकले
जो लूट  लेते  थे  कभी  गरीबों के  कफ़न
आज वो जामने के नज़र में बड़े दानी निकले
इन पापियों के काफिला कहां निकला “राहुल”
कुछ लोग क़ाबा तो कुछ लोग काशी निकले

इंतज़ार बाक़ी है

इंतज़ार… इंतज़ार इंतज़ार बाक़ी है.
तुझे मिलने की ललक और खुमार बाक़ी है.

यूँ तो बीती हैं सदियाँ तेरी झलक पाए हुए.
जो होने को था वो ही करार बाक़ी है.

खाने को दौड़ रहा है जमाना आज हमें.
यहाँ पे एक नहीं कितने ही जबार बाक़ी है.

वोही दुश्मन है, है ख़ास वोही सबसे मेरा.
दूरियां बरकरार, फिर भी इंतेज़ार बाक़ी है.

यूँ तो है इश्क़ हर जगह, फैला अनंत तलक.
मगर वो खुशबु इश्क़े जाफरान बाक़ी है.

तेरा कसूर नहीं पीने वाले दोषी हैं.
तू ग़म को करने वाला कम महान साक़ी है.

पलटती नांव से पूछो क्या डरती लहरों से हो.
कहेगी न, क्योंकि संग में उसके कहार माझी है.

जहां पहुंचे न रवि, कवि पहुंच ही जाता है.
हम क्यों हैं अब भी यहाँ पर मलाल बाक़ी है.

जब भी लिखें तो जमाने के आंसू बहने लगे.
अभी लिखने में मेरे यार धार बाक़ी है.

कभी कोई, कभी कोई मिज़ाज़ बदले तो हैं.
जो था बचपन में, वोही मिज़ाज़ बाक़ी है.

यूँ तो हम भूल गए बात सारी, शख्स सभी.
जो भी है संग उसमें माँ की याद बाक़ी है.

तराने यूँ तो बहुत हैं जिन्हें हम सुन लेते.
जिसे सुनने की चाह, तराना-जहान बाक़ी है.

जो बैठे हैं अपने में सिमट के, उठ खड़े हों.
आगे तुम्हारे सारा आसमान बाक़ी है.

कहाँ ढूँढू ऐ 'राहुल ’ तुझको इन पहाड़ों में.
इनकी ऊँचाइयों में कहाँ प्यार बाक़ी है?

खुद को जो मान बैठे हैं खुदा

खुद को जो मान बैठे हैं खुदा ये जान लें।
ये सिर इबादत के सिवा झुकता नहीं है।।

वो और होंगे, कौड़ियों के मोल जो बिक गये।
पर जहां में हर शख्स तो बिकता नहीं है।।

दर्दे जिंदगी का बयां कोई महरूम करेगा।
यह खाये-अघाये चेहरों पे दिखता नहीं है।।

पैसे से न तुलता हो जो इस जहान में ।
लगता है अब ऐसा कोई रिश्ता नहीं है।।

जिनके मकां चांदी के , बिस्तर हैं सोने के।
उन्हें इक गरीब का दुख दिखता नहीं है।।

इक कदम चल कर जो मुश्किलों से हार गये।
उन्हें मंजिले मकसूद का पता मिलता नहीं है।।

वो और होंगे जो निगाहों में तेरी खो गये।
जिंदगी के जद्दोजेहद में, प्यार अब टिकता नहीं है।।

मत भागिए दौलत, शोहरत की चाह में।
तकदीर से ज्यादा यहां मिलता नहीं है।।

सुहाने ख्वाब दिखा ऊंची कुरसियों में बैठ गये।
लगता है उनका मजलूम के दर्द से रिश्ता नहीं है।।

यह अंधेरा दिन ब दिन घना होता जा रहा है मगर।
उम्मीद का सूरज हमें अब तलक दिखता नहीं है।।

आइए अब तो हम ही कोई जतन करें।
मंजिलों तक जो ले जाये राहबर दिखता नहीं है।।

आपाधापी मशक्कत में ना यों बेजार हों।
यहां किसी को मुकम्मल जहां मिलता नहीं है।।

चाहे जितने पैंतरे या दांव-पेंच खेले मगर।
किस्मत पे किसी का दांव तो चलता नहीं है।।

चाहे कुछ भी हो हौसला अपना बुलंद रखिएगा।
हौसला ही पस्त हो तो काम फिर बनता नहीं है।।

तुम्हारे पास आता हूं

तुम्हारे पास आता हूं तो सासें भीग जाती हैं,
मुहब्‍बत इतनी मिलती है कि आंखें भीग जाती हैं।

तबस्सुम इत्र जैसा है हंसी बरसात जैसा है,
वो जब भी बात करता है तो वातें भीग जाती हैं।

तुम्हारी याद से दिल में उजाला होने लगता है,
तुम्हें जब गुनगुनाता हूं तो रातें भीग जाती हैं।

जमी की गोद भरती है तो कुदरत भी चहकती है,
नये पत्ते की आहट से ही शाखें भीग जाती हैं।

तेरे एहसास की खुशबू हमेशा ताजा रहती है,
तेरी रहमत की वारिश से मुरादें भीग जाती हैं।

-श्री आलोक श्रीवास्‍तव